कहने सुनने समझने समझाने में
बस नज़रिया सही होना चाहिए
कहने सुनने समझने समझाने में
बस नज़रिया सही होना चाहिए
अपना चश्मा उतार कर देखो
ठहर सा गया है जीवन
मसरूफ़ियत से दूर अपनो के पास ज़िंदगी ने मौक़ा तो दिया बस ज़रा तल्ख़ी घोल दी
बुरा वक्त है हिम्मत से साधे रखिए आस की डोर कस के बांधे रखिए यह घड़ी मुश्किलों भरी है मगर भरोसा कीजिए और नेक इरादे रखिए
मुस्कुराहट के साथ मुस्कुराती है दुनिया
मैं एक ईंट हूँ केवल
बाक़ी है ना जाने कितना
कुछ चुभ सा गया
अब बस मुस्कुराना है
सहज हो जाता जीवन ये अगर तुम साथ देते तो
पापा तुम्हारी छांव में मैं हूं सुरक्षित
मेरे भीतर बदलता ‘मैं’
शतरंज की बिसात पर खड़ी किसमत
घड़ी की नोक पर टिकी जिन्दगी
सुख, स्वास्थ्य, सम्मान
जो लिखा वो तो पढा सबनेजो नहीं लिखा वो पढ़ा तुमनेमन है कि शुक्रिया कह देंकलम फिर से लगी है चलने..
मतलबी दुनिया को समझने में
समझ आ ही गया
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